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100+ हिन्दी कहावते

 अपने बूढ़े बुजुर्गों से बहुत  कहावतें सुनी होगी परंतु हमें उसका मतलब नहीं पता होता आइए हम इसका मतलब बताते हैं जो कि आज के समय में बहुत जरूरी है

वर जीत लिया कानी, वर भावर घूमे तब जानी: रिश्ते हमेशा बराबर वालों से करना चाइये।


अपने जोगी नंगा तो का दिए वरदान: जिसके पास खुद के साधन ना हो वो आपको क्या देगा।


पांव गरम पेट नरम और सिर हो ठंडा तो वैद को मारो डंडा: सब कुछ ठीक है तो आप स्वस्थ है।


घी खाया बाप ने सूँघो मेरा हाथ: काम दूसरे का करना और श्रेय खुद लेना।


आगे और भी है............


अपना रख, पराया चख: अपनी वस्तु की जगह दूसरों की इस्तेमाल करना।


अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना: संवेदनहीन व्यक्ति को अपना दुख बताना।


अपनी करनी, पार उतरनी: स्वयं मेहनत करके आगे बढ़ना।


अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत: समय पर कार्य ना करने पर पछताना व्यर्थ है।


अरहर की टट्टी, गुजराती ताला: छोटी चीजों के लिए अधिक व्यय करना।


अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग: सभी अपनी राय को महत्व देते है।


अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी, टका सेर खाजा: मूर्ख लोगो और गुणवान लोगो में एक समान व्यवहार करना।

अंत भला तो सब भला: अंत में कार्य का ठीक होना सब कुछ ठीक होता है।


आगे और भी है............



अटका बनिया, देय उधार– दबाव आने पर कार्य करना।


जैसा राजा, वैसी प्रजा– जैसे हम कार्य करते है, वैसे ही हमसे सीखते है।


ज्यादा जोगी, मठ उजाड़– ज्यादा नेतृत्व करने पर भी काम बिगड़ सकता है।


ज्यों ज्यों भीगे कामरी, त्यों त्यों भारी होय– समय के साथ साथ जिम्मेदारी भी बढ़ती है।


जान है तो जहान है– जीवन को पहला महत्व देना।


जिन खोजा तीन पाइयां, गहरे पानी पैठ– कठिन परिश्रम करने पर आपको सफलता मिलती है।


जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर– चोर और बनिया अपने वालो से ही फायदा लेते है।


घाट-घाट का पानी पीना– हर तरह से अनुभवी होना 


अंधा क्या चाहे दो आंखें– जरूरत की वस्तु का प्राप्त होना।


अंधा बांटे रेवड़ी, फिर फिर अपने देय– सम्पूर्ण लाभ खुद और अपनो के लिए उठाना।


नाच न आवै आंगन टेढ़ा– अपनी कमी ना देखते हुए दूसरे में दोष ढूँढना।


 जल गगरी छलकत जाय– ज्ञान ना होने पर भी अधिक प्रदर्शन करना।

चिकने घड़े पे पानी नहीं ठहरता – मुर्ख को कुछ भी नहीं सिखाया जा सकता है।


चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान – अपने कार्य या सत्ता को अयोग्य हाथों में होना।


जब आया देही का अंत जैसा गदहा वैसा संत – मृत्यु सभी की निश्चित है, इसलिए ऊँच नीच का भेदभाव नही करना चाहिए।

अपने बेरों को कोई खट्टा नही कहता – कोई भी अपनी बुराई स्वयं नही करता है।

कर्महीन खेती करे बैल मरे पत्थर परे – जो व्यक्ति कर्म नहीं करता, उसकी स्थिति खराब हो जाती है।

अफलातून का नाती: स्वयं को ज्यादा महत्व देना।

भेड़ जहाँ जाएगी वहीं मुड़ेंगी – सीधा साधा व्यक्ति अपने रास्ते पर चलता है।

ओस चाटने से प्यास नही बुझती – आवश्यकता से कम कार्य करने पर सफलता नही मिलती।

अंधो का हाथी – मूर्खो में मुर्ख व्यक्ति द्वारा ज्ञान देना।

अंडे सेवे कोई लेवे कोई – कार्य कोई और करता है, और फायदा किसी और को होना।

अंधा क्या जाने बसंत की बहार – जिसे किसी बात का ज्ञान ना हो उसे समझाना उचित नहीं होता है।

आगे और भी है............

अंधा मुल्ला, टूटी मस्जिद – किसी कार्य को नहीं करने वाले को कार्य की कमान सोपना।

अपना ढेढर देखे नही दूसरे की फुल्ली निहारे – अपने अवगुण को ना देखना और दुसरो की बुराई करते रहना।

अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो – अपने से छोटे का फायदा लेना और नुकसान कर देना।

अरहर की टटिया गुजराती ताला – छोटे से आयोजन के लिए बड़ा तामझाम करना

मन मन भावे, मुड़िया हिलावे – करने की इच्छा रखना और मुँह से मना करते रहना।

आगे और भी है

खेत खाये गदहा मार खाये जोलाहा – किसी और कि गलती की सजा दूसरे को मिल जाना।


घी का लडडू टेढ़ा ही भला – काम के व्यक्ति में बुराई नहीं देखि जाती है।

अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख – अपनी वस्तु खो देना और दूसरे से मांगना।

चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात – कुछ समय के लिए सुख मिलना।

अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना: अपनी समझदारी का उपयोग नहीं करना।

अपनी खाल में मस्‍त रहना – किसी से मतलब न रखना।

अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे – हम स्वस्थ रहते है, तो आगे चलकर कुछ भी कर सकते है।

अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता – सिर्फ अपने कार्य को महत्व देना।

दूध का जला मट्ठा भी फूक फूक कर पीटा है – एक बार गलती करने पर दूसरी

तुरत दान महाकल्याण- उधर लिया हुआ पैसा जल्दी दे देना।

तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी— सभी अपने को ऊपर मानते है, तो काम कौन करेगा।

तेली का तेल जले, मशालची का दिल- दूसरे के खर्च करने पर दुःख किसी और को होना।

तेल देख तेल की धार देख– कार्य को करने से पहले सोचविचार करना।

थोथा चना बाजे घना- कम गुणी व्यक्ति में ज्यादा अहंकार होता है।

दिन दूनी रात चौगुनी- दिन प्रतिदिन वृद्धि होना।


दीवार के भी कान होते हैं – रहस्य का खुल जाना।


अन्धों में काना राजा – मूर्खो में कम समझदार का होना।


दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम- मुसीबत में पड़े इंसान को कुछ नहीं मिलता है।


दूर के ढोल सुहावने होते हैं— दूसरे से देखने पर सभी कार्य अच्छे लगते है।


धोबी का कुत्ता घर का न घाट का- लालची व्यक्ति को कहि स्थान नहीं मिलता।


न तीन में, न तेरह में – किसी भी कार्य में महत्वपूर्ण नहीं होना।


नीम हकीम खतरा-ए-जान – अप्रशिक्षित चिकित्सक सही नहीं होते, इनसे जान जा सकती है।

पढ़े फारसी बेचे तेल – ज्यादा योग्य होकर छोटे कार्य करना।


बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा- वास्तु अपने पास होना और दूसरी जगह ढूँढना।


बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभानअल्लाह- छोटे का बड़े से भ

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